दिल्ली की चाह में दिल्ली छोड़ आये।
आप का मत लेने आप वाले आए।
माथे पर टोपी लगा , बड़े अब आम बनगए।
दस हज़ार की रोटी दे हमसे झाडु लगवा गये।
बिजली , पानी और आटा, सब के करे ये कम दाम
सेहरों में सस्ते होंगे गाड़ी, गैस और मकान,
पर आप है कौन - गाँव में पूछ रहा किस्सान।
दिल्ही की चाह में दिल्ली छोड़ आये।
आप का मत लेने आप वाले आए।
कम होगा काला धन , रिश्वत खोरी ,
ख़त्म होगी देश सम्पत्ति की चोरी।
डर लगेगा अब करते जमाखोरी।
वादे बड़े पर इरादो का क्या?
अरविन्द कच्चे हे और बाकियो का क्या।
दिल्ली की चाह में दिल्ली छोड़ आये।
आप का मत लेने आप वाले आए।
अर्ध सतक से चुकें , पाँच साल खेलें कैसे ,
मिलते नहीं सवालो के जवाब ऐसे।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई - सब पूछ रहें हे इनसे ,
दिल्ली से भागे अब दिल्ली में घुसोगे कैसे ,
किस मुह से वोट मांगोगे हमसे।
दिल्ली की चाह में दिल्ही छोड़ आये।
आप का मत लेने आप वाले आए।
कवि - कभी कभी
image source: दक्षिण भारत (http://www.dakshinbharat.com/) link
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